किसी भी घर-आँगन में बच्चे का जन्म दुनिया की सबसे बड़ी खुशियों में से एक माना जाता है। इसे कुदरत का अनमोल वरदान समझा जाता है। बड़े-बुजुर्ग अक्सर यही आशीर्वाद देते नज़र आते हैं कि “दूध नहाओ, पूतो फलो।” यह मान्यता रही है कि जिसने बच्चे दिए हैं, पालने का इंतज़ाम भी वही करेगा और सभी बच्चे अपना-अपना भाग्य लेकर आते हैं।
लेकिन समय के साथ-साथ बच्चों की परवरिश में आने वाली चुनौतियाँ भी बढ़ती गई हैं। दो वक्त का खाना जुटाना भी कई परिवारों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। ज़ाहिर है, परिवार में जितने ज़्यादा बच्चे, उतनी ही ज़्यादा मुश्किलें।
इसके चलते लोगों का नज़रिया बदलने लगा है। वे अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के बारे में सोचने लगे हैं। सरकार द्वारा भी “हम दो, हमारे दो” का नारा दिया गया। लेकिन धीरे-धीरे यह भी बदलकर “हम दो, हमारा एक” हो गया।
आजकल की युवा पीढ़ी, खासकर करियर-ओरिएंटेड कपल्स, का ध्यान बच्चों की बजाय अपने करियर पर ज़्यादा केंद्रित होता जा रहा है। पहले तो वे शादी ही देर से करना चाहते हैं, और अगर करते भी हैं, तो बच्चे पैदा करने से बचते हैं।
ऐसे कपल्स अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीना चाहते हैं। वे अपने करियर को प्राथमिकता देते हैं, जिससे उनकी आमदनी ज़्यादा होती है और वे ज़्यादा खर्च कर पाते हैं, घूम-फिर पाते हैं और अपनी ज़िंदगी का पूरा आनंद ले पाते हैं। ऐसे कपल्स को अक्सर “डिंक” (DINK) कपल कहा जाता है, जिसका मतलब है “डबल इनकम, नो किड्स” (Double Income, No Kids)। पिछले कुछ सालों में यह ट्रेंड काफ़ी लोकप्रिय हुआ है।
मैंने भी अपने आस-पास, सोशल गैदरिंग्स और फैमिली फंक्शन्स में, ऐसे कई युवा कपल्स से बात की है। ज़्यादातर इस लाइफस्टाइल को लेकर सहमत नज़र आते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:
- आज़ादी और आर्थिक स्वतंत्रता: कुछ लोग बिना किसी ज़िम्मेदारी के, आज़ादी से जीना चाहते हैं।
- क्वालिटी टाइम: कई कपल्स अपने पार्टनर के साथ ज़्यादा समय बिताना, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करना चाहते हैं।
- माता-पिता का अनुभव: कुछ लोगों ने अपने माता-पिता को बच्चों की परवरिश में बहुत संघर्ष करते देखा है, या फिर माता-पिता के आपसी झगड़ों का उन पर बुरा असर पड़ा है, जिससे वे बच्चे पैदा करने से हिचकिचाते हैं।
- बदलती ज़िंदगी: कुछ लोगों की ज़िंदगी और प्राथमिकताएँ लगातार बदलती रहती हैं, जिससे वे बच्चों की ज़िम्मेदारी लेने से कतराते हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी कारण: कई बार स्वास्थ्य संबंधी कारणों से भी कपल्स को यह फ़ैसला लेना पड़ता है।
ऐसा नहीं है कि पहले लोग यह लाइफस्टाइल नहीं जीना चाहते थे। लेकिन पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते वे ऐसा नहीं कर पाते थे।
रिसर्च गेट की एक स्टडी के अनुसार, भारत में ऐसे कपल्स की संख्या बढ़ रही है। देखा गया है कि 65% कपल्स अब बच्चे पैदा नहीं करना चाहते।
डिंक कपल्स शादी के बाद बच्चे पैदा करने की जल्दी नहीं करते, यहाँ तक कि कई बिना बच्चों के ही अपनी ज़िंदगी बिताना चाहते हैं। उनका पूरा ध्यान एक अच्छी लाइफस्टाइल पर होता है। वे अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं और अपनी पर्सनल चॉइस को प्राथमिकता देते हैं। उनका मानना है कि बच्चा पैदा करने के लिए आपको शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह तैयार होना चाहिए।
ऐसे कपल्स सिर्फ़ एक बच्चा पैदा करना या फिर अपने बुढ़ापे के लिए निवेश के तौर पर बच्चे पैदा करने के विचार से सहमत नहीं होते। उनका कहना है कि वे बच्चे इसलिए पैदा नहीं करना चाहते कि वे उनकी देखभाल करें।
एक लड़की ने तो यहाँ तक कहा कि “इस संसार में आए हैं तो पीड़ा तो भोगनी ही है, ज़्यादा दुख और कम खुशी वाली पीढ़ी को बढ़ाने का क्या फ़ायदा? हमें बच्चे पैदा करके उन्हें दुखों की कतार में क्यों खड़ा करना चाहिए? अंत में तो सबका अंत निश्चित है।”
हालांकि, चाइल्ड-फ्री लाइफस्टाइल की अपनी चुनौतियाँ भी हैं। कपल्स को कई बार समाज से अलग-थलग महसूस होता है। उनकी आलोचना होती है। कई बार उन्हें गलत इन्वेस्टमेंट के फ़ैसले भी लेने पड़ते हैं।
लेकिन मेरा मानना है कि हर कपल की अपनी प्राथमिकताएँ और व्यक्तिगत फ़ैसले होते हैं। यह निर्णय उनका अपना है, खासकर महिला का। समाज भले ही इस बात को लेकर उन्हें जज करे, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। वक्त बदल रहा है, सबके जीने का तरीका अलग है। कुछ लोग परिवार बनाना पसंद करते हैं, तो कुछ नहीं। सबके निर्णयों और चॉइस का सम्मान होना चाहिए।
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