तुलसीदास जी को सामान्यतः भक्ति काव्य के कवि माने जाते हैं, और यह सत्य भी है। किन्तु, केवल इतना ही मान लेना उनके काव्य के साथ न्याय नहीं होगा। उनके काव्य को केवल सांसारिक जिम्मेदारी से मुक्त वृद्ध जनों के लिए ही मान लेने से, सक्रिय जीवन में व्यस्त समाज, विशेषतः युवा वर्ग, तुलसी के काव्य के जीवनोपयोगी तत्वों से वंचित रह जाता है। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक-सामाजिक विषयों संबंधी अध्ययन के अनुसार, वर्तमान भारत युवाओं का देश है और आने वाले कई वर्षों तक युवाओं का देश रहेगा। अतः यह आवश्यक है कि देश की युवा आबादी तुलसी के काव्य में निहित संदेश से लाभान्वित हो।
तुलसी जैसे महाकवि हजारों वर्षों में एक ही बार आते हैं। यह युगदृष्टा, युग-स्रष्टा हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, गौतम बुद्ध के बाद तुलसीदास ही सबसे बड़े लोकनायक हैं। तुलसी के काव्य की इस जीवनदायिनी ऊर्जा का लाभ आज का युवा वर्ग उठाए, यह जरूरी है और अत्यधिक महत्वपूर्ण भी है।
आज का युवा महत्वाकांक्षी है, प्रगतिशील है, अति-उत्साही एवं आधुनिक विचारधारा का है, और होना भी चाहिए। यह अच्छा है। किन्तु, शिक्षक, युवक और युवतियों में आज के दौर में धैर्य और साहस की कमी दिखाई देती है। दमघोंटू प्रतियोगिता की भागमभाग में तनिक भी पीछे जाने पर बहुत जल्दी हताश हो जाते हैं, निराश हो जाते हैं, यहाँ तक कि जीवन से भी ऊब जाते हैं।
आज युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंता का विषय है। कोई परीक्षा परिणाम में अनुत्तीर्ण होने पर, कोई बेरोजगारी से, कोई प्रेम में असफल होने पर, कोई कारोबार में असफल होने पर, और कोई तो कक्षा छठी एवं सातवीं के छोटे बच्चे तक आत्महत्या कर लेते हैं। शिक्षण संस्थानों में वार्षिक परीक्षाओं के समय आते-आते यह समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। पूरे समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है। यह कैसी अधीरता है?
तुलसी के राम! युवराज पद से वंचित हो गए। महलों का सुख, राजसी ठाठ-बाट, स्वादिष्ट भोजन, सारी सुविधाएँ छोड़कर भी 14 वर्ष की लंबी अवधि के लिए वनवासी जीवन सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक पल के लिए भी अधीर नहीं हुए। वन में भी वनवासी जीवन चैन से नहीं बीता। राक्षसों से सतत संघर्ष बना रहा। ऐसी विकट परिस्थिति में पत्नी का भी हरण हो जाता है। लेकिन राम, इतना सब हो जाने पर भी हताश नहीं हुए। उनके विपरीत, उनका आत्मविश्वास दृढ़ है कि किसी भी प्रकार एक बार सीता का ठिकाना भर मालूम हो जाए, फिर तो वह रावण को भी पल भर में पराजित कर सीता को छुड़ा लेंगे।
तुलसी के राम का यह अटल विश्वास, हताशा और निराशा के अंधकार में डूबती पूरी मानव जाति के लिए प्रकाश-स्तंभ है। रावण ने सीता का हरण कर उन्हें लंका की अशोक वाटिका में कैद कर लिया है। उसने अपने भुजबल से सारे विश्व को पराजित कर रखा है। उसके राज्य में छल-कपट, अनीति व आतंक का बोलबाला था। चारों ओर भय व्याप्त है, लूट-हत्या मची हुई है। आचार-विचार प्रायः नष्ट हो गए हैं।
ऐसे दुर्जय शत्रु से कैसे मुकाबला? सागर से घिरी लंका तक पहुँचने की चुनौती! लेकिन राम तनिक भी विचलित नहीं हुए। ऐसे विकट समय में चाहते तो अयोध्या से सहायता ले सकते थे, पर उन्होंने सहायता नहीं ली। वानर जातियों में ही संकल्प शक्ति का संचार कर, उनकी सहायता से समुद्र पर सेतु का निर्माण किया। लंका पर आक्रमण कर रावण को पराजित किया तथा सीता को मुक्त कराया। संकट की घड़ी में राम ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास को बनाए रखा। यह धर्म का मूल्य था। अधर्म पर धर्म की विजय थी! और हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी संघर्षशीलता का यह पाठ भारतीय जनजीवन को दुखों का सामना साहसपूर्वक करने की प्रेरणा प्रदान करता है।
राम ने लंका के साम्राज्य पर विजय प्राप्त की, किष्किंधा के साम्राज्य को भी जीता, किन्तु पुनः स्थानीय शासन व्यवस्था कायम की। युद्ध के बाद दो दिन रुक कर थकान दूर करने के विभीषण के अनुरोध को भी ठुकरा दिया। वैभव और विलासिता उनके कदमों में लोट रही थी, किन्तु राम ने उसे अस्वीकार किया। यह भारतीय संस्कृति का उज्जवल पक्ष है। आज के बाजारवाद और उपभोक्तावाद को कड़ी चुनौती है। भारतीय युवा मन इसमें भ्रमित न हो।
आज के युवा हृदय की भी यही चाह है कि राम का चरित्र हमारे लिए प्रेरणादायक है। वनवास की अवधि में राम चाहते तो अयोध्या के निकट ही किसी सुरक्षित एवं सुंदर जगह अपना जीवन व्यतीत कर सकते थे। लेकिन राम रुके नहीं। सतत वन में विचरण करते रहे। वहाँ के कंद-मूल-फल खाकर ही अपनी भूख मिटाई। पगडंडियों पर, जंगलों में विचरण करते रहे। वहाँ के ऋषि-मुनियों से मिले, उनके आश्रमों में जाकर भेदभाव और कुरीतियों को दूर किया। शबरी मिली, जिसकी कुटिया पर राक्षसों का आतंक था, उसे हटाया। उन्होंने दीन-हीन को प्रेम दिया और बदले में प्रेम पाया। राम ही प्रेम हैं, प्यार हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि उनके समान पुत्र, शिष्य, भाई, पति, सखा, मित्र एवं राजा न आज तक पैदा हुआ है, न होगा। आज हमारे समाज में दुष्कर्म जैसी घटनाएं आए दिन घटती रहती हैं। चरित्र पतन चरम सीमा पर पहुँच गया है। सामाजिक मर्यादाएं नष्ट हो गई हैं, और चारों ओर व्यभिचार फैला हुआ है।
इन सब विकृतियों के बीच आदर्श आचरण करते हुए, राजा राम ने अपनी पत्नी सीता के प्रति समर्पण में कोई कसर नहीं छोड़ी। सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए, सीता की अग्निपरीक्षा ली। परन्तु, उनके हृदय में सीता जी के अतिरिक्त अन्य किसी स्त्री के प्रति आकर्षण न जागा। उन्होंने पूर्ण मर्यादाओं के साथ पतिव्रत धर्म का पालन किया।
आज प्रत्येक माता राम जैसा पुत्र, हर एक बहन राम जैसा भाई चाहती है। स्त्री भी पति के रूप में राम का अंश चाहती है। गुरु भी राम जैसा ही शिष्य चाहता है। राम ऐसा व्यक्तित्व है, जो शत्रुता को भी प्रेम में बदलने का सर्वोत्तम उदाहरण है। क्योंकि युद्ध भी उन्होंने मर्यादा के साथ लड़ा था, एवं विजय प्राप्त की थी।
समाज की चेतना को जगाने का कार्य संत, चिंतक और साहित्यकार-कवि करते हैं। अतः, हे भारत के युवकों! जागो और राम के चरित्र को मन-प्राण में धारण करो। हताशा कैसी? आने वाला कल आपका है, आपकी इस पुण्यभूमि भारत का है!
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