आत्म-जागरूकता

भौतिकता से परे: संतोष की सच्ची तलाश

हाल ही में, एक इंटरव्यू में राज्यसभा सांसद और पद्मश्री से सम्मानित सुधा मूर्ति जी ने बताया कि लगभग 30 वर्षों बाद उन्होंने अपने लिए एक साड़ी खरीदी। यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि करोड़ों की संपत्ति की मालकिन होने के बावजूद, वह इतनी सादगी से जीती हैं। उनकी इस सरलता ने मुझे गहराई से प्रभावित किया और इस लेख को लिखने के लिए प्रेरित किया।

आज, हम में से अधिकांश लोग अधिक चीजों, गैजेट्स, कपड़ों, खाने, घूमने और मनोरंजन के पीछे भाग रहे हैं। सोशल मीडिया ने इस मानसिकता को और भी बढ़ावा दिया है। हम ज्यादा पाने की इस दौड़ में ज्यादा कमाने, ज्यादा खर्च करने और ज्यादा खरीदने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसी में हम खुशी और सफलता का अनुभव करते हैं। लेकिन क्या यह वास्तविक खुशी है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।

आज के समय में, बहुत से लोग अपनी असली खुशी की कमी को ‘चीजों’ से भरने की कोशिश करते हैं। वे नए कपड़े, गहने, गैजेट्स, और अन्य भौतिक वस्तुओं में अपनी खुशियों को खोजने का प्रयास करते हैं। लेकिन ये वस्तुएं एक क्षणिक संतोष तो दे सकती हैं, परंतु यह खुशी सतही होती है। असली खुशी और संतुष्टि कहीं गहरे में होती है, और इसे भौतिक वस्तुओं से नहीं पाया जा सकता। इसलिए, आपको यह विचार करना चाहिए कि वास्तव में क्या आपको खुशी देता है? क्या वह सादगी, संबंधों में गहराई, और आत्म-संतोष हो सकता है?

इसके साथ ही, आज हममें से कई लोग लगातार दूसरों से मान्यता और स्वीकृति पाने की कोशिश में लगे रहते हैं। सोशल मीडिया पर दिखावे का यह चलन हमें एक अंतहीन दौड़ में धकेल देता है, जिसमें हम अपनी पहचान और मूल्य को दूसरों की नजरों में खोजते हैं। लेकिन यह दिखावा और मान्यता की चाहत हमें और भी अकेला बना देती है। हम जितना अधिक दूसरों से प्रेम और स्वीकृति की उम्मीद करते हैं, उतना ही हम उनसे दूर होते जाते हैं।

कुछ साल पहले मेरी माताजी का देहांत हुआ था। उनके बक्से में से केवल दो साड़ियां और एक जोड़ी झुमके मिले। बावजूद इसके, उनके चेहरे पर हमेशा संतुष्टि और खुशी का भाव झलकता था। मैं आज भी समझ नहीं पाती कि इतने कम संसाधनों के साथ उन्होंने इतना संतुष्ट और खुशहाल जीवन कैसे जिया। शायद इसी वजह से मैंने भी कम संसाधनों के साथ सरल जीवन जीने की ओर कदम बढ़ाए। अगर आप अपने जीवन को सरल, सहज और तनावमुक्त बनाना चाहते हैं, तो मिनिमलिस्ट जीवनशैली एक सही तरीका हो सकता है। यानी, केवल उन वस्तुओं को अपने पास रखें, जिनकी वास्तव में आपको जरूरत है।

यदि आप अपनी आवश्यकताओं से परेशान हैं या खर्चे कम करना चाहते हैं, तो पहले तय करें कि किन संसाधनों की आपको सच में जरूरत है। हमारे माता-पिता या दादी-नानी के समय में लोग तीन कमरों के घर में रहते थे, जहां सभी जमीन पर सोते थे और साथ में भोजन करते थे। उनके पास सीमित वस्त्र और एक जोड़ी चप्पल होती थी, लेकिन वे संतुष्ट रहते थे।

यदि कुछ चीजें वास्तव में जरूरी नहीं हैं, तो उन्हें अपने जीवन से हटा दीजिए। यह आपको मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी। आप इसकी शुरुआत अपने आसपास की सजावटी वस्तुओं को हटाकर कर सकते हैं। हर चीज पर विचार करें और तय करें कि वह आपको खुशी देती है या नहीं। जो वस्तुएं आपके लिए जरूरी नहीं हैं, उन्हें एक बॉक्स में रख दीजिए और 30 दिनों तक देखिए कि क्या उनकी याद आती है या जरूरत महसूस होती है। 

कपड़े ऐसी चीजें हैं, जिन्हें जमा करना आसान है, खासकर जहां अलग-अलग मौसम होते हैं। जो कपड़े आपको पसंद नहीं आते, फिट नहीं होते, या जिनमें आप अच्छे नहीं लगते, उन्हें दान कर दीजिए। ऐसे जूते भी दान कर दें, जो आरामदायक नहीं हैं। इससे आपके पास केवल वे चीजें रहेंगी, जिनकी आपको वास्तव में जरूरत है। 

किसी भी चीज़ को खरीदने से पहले यह सोचें कि क्या इसकी आपके जीवन में सचमुच जरूरत है और आप इसे कितनी बार इस्तेमाल करेंगे। एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी इसी जीवनशैली में विश्वास रखते थे। उनका कहना था कि जटिलता को सरल बनाएं। उन्होंने इस सिद्धांत को अपने बिजनेस में भी लागू किया। जब आप खरीदारी करते हैं, तो माइंडफुलनेस का अभ्यास करें और गुणवत्ता पर ध्यान दें। गुणवत्ता वाली चीजें अधिक समय तक चलती हैं और आपके जीवन को सरल बनाती हैं। 

अपने घर से गैर-जरूरी वस्तुएं हटाकर देखें। इससे आपके मन और घर में जगह बनेगी, जो मानसिक शांति और जागरूकता को बढ़ावा देती है। तनाव कम होगा, बचत बढ़ेगी, और सफाई आसान हो जाएगी। इस जीवनशैली के साथ, आप स्वस्थ आदतों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं, जैसे योग, ध्यान, और प्रकृति के साथ समय बिताना।

“कामयाबी” की दौड़ में अपनी खुशी को मत भूलिए, क्योंकि यह दौड़ अंततः मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकती है। जब शरीर और मन इसकी कीमत चुकाएंगे, तब कोई भी मदद नहीं कर पाएगा। यह समय है, जब हम इस पर विचार करें कि क्या हम सच में वही हैं, जो हम दूसरों को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं? क्या हमारी असली पहचान और खुशी उन क्षणिक मान्यताओं में है, या हम अपने अंदर की शांति और प्रेम को खोजने की कोशिश कर सकते हैं? अपने आप से यह सवाल पूछें और समझें कि असली खुशी और संतोष बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि हमारे अपने भीतर है।

2 Comments

  1. Bahut accha lekh pranadayk

  2. Good lesson 👏 👌 👍

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