शिक्षा

शिक्षा और शिक्षक

शिक्षक और शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ की हड्डी होते हैं। शिक्षक न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि विद्यार्थियों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तमाम नकारात्मक खबरों के बीच एक सुखद सूचना यह आई है कि मध्य प्रदेश सरकार ने इस बार एक अनोखी पेशकश की है – निजी स्कूलों की बजाय सरकारी स्कूलों में बच्चे अधिक संख्या में प्रवेश ले रहे हैं। इस प्रवृत्ति को बनाए रखने के लिए सरकार को ईमानदारी पूर्वक प्रयास करने होंगे।

कुछ दिन पहले समाचार पत्र में एक रोचक खबर छपी थी कि अब सप्ताह में एक दिन सरकारी अधिकारी और एक दिन विधायक या मंत्री बच्चों की कक्षा लेंगे। यह सवाल उठता है कि क्या सरकारी स्कूलों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होती? क्या अधिकारी और राजनेता, जो देश संभाल रहे हैं, विदेश से पढ़कर आए हैं? वास्तव में, उन्हीं शिक्षकों ने उन्हें पढ़ाकर इस योग्य बनाया है। क्या यह चिंता की बात नहीं है कि हम शिक्षकों की योग्यताओं पर संदेह कर रहे हैं?

हमारे शिक्षक गण योग्य हैं, लेकिन उन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए उचित वातावरण नहीं मिलता। बच्चे अक्सर होमवर्क नहीं करते, और यदि शिक्षक उन्हें दंडित करता है, तो माता-पिता शिक्षक से झगड़ा करने स्कूल पहुंच जाते हैं। “छड़ी पड़े छम छम, विद्या आवे दम दम” के सिद्धांत पर अब शिक्षण नहीं चल सकता। माता-पिता को भी विचार करना चाहिए कि कोई भी शिक्षक बिना कारण बच्चों को दंडित नहीं करता।

मैं एक छोटे से उदाहरण से शिक्षकों की सकारात्मक सोच बता सकता हूं। मेरे पुत्र की स्कूल डायरी में शिक्षक ने लिखा था कि उसने स्कूल के नियमों का उल्लंघन किया है। मैंने डायरी में जवाब लिखा कि गलत कार्य के लिए उचित दंड देने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। अगले दिन, शिक्षक ने मेरे पुत्र को माफ कर दिया, यह दिखाता है कि शिक्षक भी जानते हैं कि बच्चों को कैसा दंड देना चाहिए।

यह आश्चर्य की बात है कि शिक्षक अपने कार्य में प्रशासन के हस्तक्षेप का विरोध नहीं करते। शायद इसका कारण यह है कि विरोध करने पर उनके तबादले की तलवार लटकी रहती है। अब शिक्षक भगवान नहीं, लाचार की श्रेणी में आ गए हैं।

वास्तव में, सप्ताह में एक दिन शिक्षकों को सरकारी अधिकारियों, विधायकों और मंत्रियों की क्लास लेनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि कितनी फाइलें रिश्वत के चक्कर में अटकी पड़ी हैं। यह दुखद है कि अधिकांश सरकारी कर्मचारी और राजनेता भ्रष्ट हैं। ऐसे लोग बच्चों को क्या सिखाएंगे? कैसे रिश्वत लेना है या कैसे प्रतिशत तय करना है?

शिक्षक भी अब पूरी जवाबदारी से अपना धर्म नहीं निभा रहे हैं। आज देश को उच्च स्थान पर ले जाने के लिए शिक्षकों को अपना दायित्व संभालना चाहिए। जो माता-पिता अपने बच्चों को आपके हवाले करते हैं, उन्हें अच्छा मार्गदर्शन देने के लिए शिक्षकों को अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करना चाहिए।

जैसे एक कुशल कारीगर अपनी मेहनत से मिट्टी को कभी मटकी, कभी सुराही, कभी मूर्ति बनाता है, उसी तरह शिक्षकों का कर्तव्य है बच्चों को अच्छा नागरिक बनाना। उनका कार्य है विद्यार्थियों का उच्च लक्ष्य निर्धारित करना, उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना, नैतिक और सामाजिक मूल्यों का विकास करना, तथा विद्यार्थियों की समस्याओं को सुनना और समाधान प्रदान करना।

परंतु आज शिक्षकों को शिक्षा के अलावा अन्य कई कार्य करने पड़ते हैं – चुनाव कराना, टीकाकरण का प्रचार करना, मतदान के लिए प्रोत्साहित करना, जनगणना का कार्य संपादित करना, मतदाता सूची तैयार करना और अन्य सरकारी योजनाओं की जानकारी एकत्रित करना। ये अतिरिक्त कार्य उनके मुख्य दायित्व से ध्यान भटकाते हैं।

यदि स्वतंत्रता के बाद शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया गया होता, तो आज देश में अनपढ़ या बेरोजगार लोगों की संख्या इतनी अधिक नहीं होती। साथ ही, जो पढ़-लिख गए हैं, वे केवल साक्षर होने के बजाय श्रेष्ठ नागरिक बन गए होते। हमारी शिक्षा पद्धति ने विद्यार्थियों को श्रेष्ठ नागरिक बनाना छोड़ दिया है और केवल नौकरी योग्य, पैसा कमाने वाले व्यक्ति बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है।

अंत में, शिक्षा और शिक्षक दोनों मिलकर समाज में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं और एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। हमें इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने की आवश्यकता है।

1 Comment

  1. Teachers ke hatho me desh ka future hai krmth Teachers hona bhut jruri hai

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