आध्यात्मिकता

क्या हमें भगवान की ज़रूरत होती है?

आज के समय में, जब हमारे गुरु या भक्तजन हमसे कहते हैं कि भगवान का भजन कीजिए या राम नाम का स्मरण कीजिए, तो लोग पूछते हैं, “हमें भगवान की क्या जरूरत है?” हम मेहनत करते हैं, ईमानदारी से पैसा कमाते हैं। हमारे पास पैसा है, रुपया है, गाड़ी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है, बच्चे हैं, माता-पिता हैं, सुंदर पत्नी है। फिर भगवान की पूजा और राम नाम की जरूरत क्यों है?

जिस तरह प्यासे को पानी की जरूरत होती है, उसी तरह संसार के हर प्राणी को भगवान की जरूरत होती है। हमारे पास सब कुछ होते हुए भी चिंता और बेचैनी क्यों होती है? इसका मतलब है कि हमें प्रभु के नाम का स्मरण करने की आवश्यकता है। ईश्वर एक निराकार शक्ति हैं, जो हर व्यक्ति की आत्मा में विद्यमान है। भगवान में विश्वास रखने का मतलब है अपने आप में विश्वास रखना। वे हमें सही मार्गदर्शन देते हैं और सच्चाई की ओर प्रेरित करते हैं। जब हम गहरे अंधकार में कहीं भटक जाते हैं, और वहां रोशनी की एक किरण भी दिखाई देती है, तो यह एक चमत्कार से कम नहीं होता। तब हम भगवान को धन्यवाद देते हैं, और हमारे मुँह से यही निकलता है, “हे भगवान, तेरा ही सहारा है।”

एक व्यक्ति अपनी यात्रा के लिए निकला। उसने सब सामान साथ ले लिया। वह पान और तंबाकू खाता था। ट्रेन छूटने के बाद उसने सोचा कि तंबाकू खा ली जाए। तमाम खाने का सामान बाहर निकाला, लेकिन उसे चुने की डिबिया नहीं मिली। फिर ध्यान आया कि डिबिया तो उसने रखी ही नहीं, वह तो घर पर ही भूल आया। वह बेचैन हो गया, बार-बार अपने सामान को टटोलने लगा। कहीं कुछ गिरता तो उसे लगता कि चुने की डिबिया ही गिरी है। कोई उससे बात करता, तो उसे लगता कि वह पूछेगा, “क्या तुम्हें चुना नहीं चाहिए?” जिस चीज की जरूरत होती है, या जिससे प्रेम होता है और वह न हो, तो हम बेचैन हो जाते हैं। क्या हमें भगवान की भी ऐसी जरूरत होती है, या उससे जुड़ी बैचेनी होती है?

हम अपने घर की हर छोटी-बड़ी वस्तु को अपनी मानते हैं। पत्नी, बच्चों और घर की सभी जानकारी हमें होती है। क्या हमारे पूजाघर के भगवान, जिनकी हम रोज पूजा करते हैं, कभी हमें अपने लगे हैं? अगर हमारी यही स्थिति है, तो भगवान से प्रेम कैसे होगा? यदि हम चाहते हैं कि भगवान के प्रति हमें प्रेम हो, तो हमें संसार की आशा छोड़नी होगी, व्यवहार नहीं। विषयों में आसक्त होने वाली हमारी वृत्ति भगवान के प्रेम में बाधा बनती है। भगवान में सच्ची रुचि और आकर्षण होना चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि भगवान के बिना मेरा काम ही रुक जाता है। हम जिसके साथ रहते हैं, उसके साथ छूट जाने पर दुखी हो जाते हैं, हमारा आनंद खत्म हो जाता है, और हम उसे बार-बार याद करते हैं।

इसी प्रकार, भगवान के सहवास से हमें कितना प्रेम मिलेगा? भगवान के सहवास में अहंकार को भूल जाना चाहिए। वही कर्ता-धर्ता हैं, यही भावना दृढ़ होनी चाहिए। जब हम व्याकुलता में भगवान को याद करेंगे, तो वह प्रसन्न होकर दौड़ा चला आएगा। यह शंका मन में कभी नहीं लानी चाहिए कि भगवान के स्मरण से क्या होने वाला है। नाम स्मरण में कितनी सामर्थ्य है, यह नाम स्मरण से ही महसूस कर सकते हैं। जिसे राम नाम स्मरण से प्रेम हो गया, उसने मानो भगवान को अपना बना लिया।

भगवान में विश्वास रखने से हमें मानसिक और भावनात्मक शांति मिलती है। उनके शिक्षा और सिद्धांत हमें सही दिशा में चलने का मार्गदर्शन देते हैं। कठिन समय में यही विश्वास हिम्मत और सकारात्मकता प्रदान करता है। ईश्वर व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और सार्वजनिक जीवन में संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। भगवान हमारे जीवन में इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वह हमारे अस्तित्व का मूल हैं। वह जीवन में प्यार, खुशी, ज्ञान, और शक्ति प्रदान करते हैं। वह हमारे मार्गदर्शक और सहायक हैं, और हमें सही और गलत में अंतर करने में मदद करते हैं।

पूरे ब्रह्मांड को संतुलित रूप से संचालित करने वाली निराकार शक्ति ही ईश्वर हैं।

3 Comments

  1. […] भगवान एक ऐसा नशा है जो बचपन से ही हमारे दिमाग में भर दिया जाता है। इसे मानने की वजह से हम खुद पर विश्वास खो देते हैं। असल में, इंसान की अपनी मेहनत और संघर्ष ही उसे मंजिल तक पहुंचाते हैं। इस का अस्तित्व बस उस सोच का परिणाम है जो हमें बचपन से सिखाई गई है। […]

  2. Sari srsthe hi ishver hai bhut sunder lekh

  3. मानव सेवा ही ईश्वर सेवा हे।

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